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प्रेम और विवाह : ओशो की नजर से


osho about marriage


 प्रेम और विवाह : ओशो की नजर से


अगर प्रेम से विवाह निकलता हो, तब तो विवाह एक गहरा अर्थ ले लेता है। और अगर विवाह दो पंडितों के और दो ज्‍योतिषियों के हिसाब किताब से निकलता हो, और जाति के विचार से निकलता हो और धन के विचार से निकलता हो तो वैसा विवाह कभी भी शरीर से ज्‍यादा गहरा नहीं जा सकता।

लेकिन ऐसे विवाह का एक फायदा है। शरीर मन के बजाय ज्‍यादा स्‍थिर चीज है। इसलिए शरीर जिन समाजों में विवाह का आधार है, उन समाजों में विवाह सुस्‍थिर होगा। जीवन भर चल जाएगा।

शरीर अस्‍थिर चीज नहीं है। शरीर बहुत स्‍थिर चीज है। उसमें परिवर्तन बहुत धीरे-धीरे आता है। और पता भी नहीं चलता। शरीर जड़ता का तल है। इसलिए जिन समाजों ने यह समझा कि विवाह को स्‍थिर बनाना जरूरी है—एक ही विवाह पर्याप्‍त हो, बदलाहट की जरूरत न पड़े; उनको प्रेम अलग कर देना पडा। क्‍योंकि प्रेम होता है मन से और मन चंचल है।

जो समाज प्रेम के आधार पर विवाह को निर्मित करेंगे, उन समाजों में तलाक अनिवार्य होगा। उन समाजों में विवाह परिवर्तित होगा। विवाह स्‍थायी व्‍यवस्‍था नहीं हो सकती है। क्‍योंकि प्रेम तरल है।

मन चंचल है, और शरीर स्‍थिर और जड़ है।

आपके घर में एक पत्‍थर पडा हुआ है। सुबह पत्‍थर पड़ा था। सांझ भी पत्‍थर वहीं पडा रहेगा। सुबह एक फूल खिला था। शाम तक मुरझा जाएगा। फूल जिंदा है। जन्मे गा, मरेगा। पत्‍थर मुर्दा है। वैसे का वैसा सुबह था। वैसा ही श्‍याम पडा रहेगा। पत्‍थर बहुत स्‍थिर है।

विवाह पत्‍थर पडा हुआ है। शरीर के तल पर जो विवाह है, वह स्‍थिरता लाता है। समाज के हित में है। लेकिन एक-एक व्‍यक्‍ति के अहित में है। क्‍योंकि वह स्‍थिरता शरीर के तल पर लायी गई है ओर प्रेम से बचा गया है।

इसलिए शरीर के तल से ज्‍यादा पति और पत्‍नी का संभोग और सेक्‍स नहीं पहुंच पात है। एक यांत्रिक , एक मेकैनिकल रूटीन हो जाती है। एक यंत्र की भांति जीवन हो जाता है। सेक्‍स का। उस अनुभव को रिपिट करते रहते हे। और जड़ होते चले जाते है। लेकिन उससे ज्‍यादा गहराई कभी भी नहीं मिलती।

जहां प्रेम के बिना विवाह होता है। उस विवाह में और वेश्‍या के पास जाने में बुनियादी भेद नहीं, थोड़ा सा भेद है। बुनियादी नहीं है वह। वेश्‍या को आप एक दिन के लिए खरीदते है और पत्‍नी को आप पूरे जीवन के लिए खरीदते है। इससे ज्‍यादा फर्क नहीं पड़ता। जहां प्रेम नहीं है, वहां खरीदना ही है। चाहे एक दिन के लिए खरीदो चाहे पूरी जिंदगी के लिए खरीदो। हालांकि साथ रहने से रोज-रोज एक तरह का संबंध पैदा हो जाता है एसोसिएशन से। लोग उसी को प्रेम समझ लेते है। वह प्रेम नहीं है। वह प्रेम और ही बात है। शरीर के तल पर विवाह है इसलिए शरीर के तल से गहरा संबंध कभी भी नहीं उत्‍पन्‍न हो पाता है। यह एक तल है।

 ओशो,,,

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