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स्त्री और पुरूष एक अध्भुत रहस्य : ओशो की नजर से

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स्त्री और पुरूष  एक अध्भुत रहस्य : ओशो की नजर से 


हम कहानी सुनते हैं कि सत्यवान मर गया है सावित्री उसे दूर से जाकर उसके प्राण को यमराज से लौटा लायी है। लेकिन कभी कोई कहानी ऐसी सुनी कि पत्नी मर गयी हो और पति दूर से जाकर लौटा लाया हो। नहीं सुनी है हमने।

स्रियां लाखों वर्ष तक इस देश में पुरुषों के ऊपर बर्बाद होती रही हैं। मरकर सती होती रही है। कभी ऐसा सुना कि कोई पुरुष भी किसी स्‍त्री के लिए सती हो गया हो? क्योंकि सारा नियम सारी व्यवस्था सारा अनुशासन पुरुष ने पैदा किया है। वह स्‍त्री पर थोपा हुआ है। सारी कहानियां उसने गढ़ी है। वह कहानियां गढ़ता है जिसमें पुरुष को स्‍त्री बचाकर लौट आती है। और ऐसी कहानी नहीं गढ़ता जिसमें पुरुष स्‍त्री को बचाकर लौटता हो।

स्‍त्री गयी कि पुरुष दूसरी स्‍त्री की खोज में लग जाता है उसको बचाने का सवाल नहीं है। पुरुष ने अपनी शुविधा के लिये सारा इंतजाम कर लिया है। असल में जिसके पास थोड़ी सी भी शक्ति हो किसी भांति की वे जो थोड़े भी निर्बल हों किसी भी भांति से उनके ऊपर सवार हो ही जाते हैं। मालिक बन ही जाते हैं। गुलामी पैदा हो जाती है।

पुरुष थोड़ा शक्तिशाली है शरीर की दृष्टि से। ऐसे यह शक्तिशाली होना किन्हीं और कारणों से पुरुष को पीछे भी डाल देता है। पुरुष के पास स्ट्रैंग्थ और शक्ति ज्यादा है। लेकिन रेसिस्टेंस उतनी ज्यादा नहीं है जितनी स्‍त्री के पास है। और अगर पुरुष और स्‍त्री दोनों को किसी पीड़ा में सफरिंग में से गुजरना पड़े तो पुरुष जल्दी टूट जाता है। स्‍त्री ज्यादा देर तक टिकती है। रेसिस्टेंस उसकी ज्यादा है। प्रतिरोधक शक्ति उसकी ज्यादा है। लेकिन सामान्य शक्ति कम है। शायद प्रकृति के लिए यह जरूरी है कि दोनों में यह भेद हो क्योंकि स्‍त्री कुछ पीड़ाएं झेलती है।

जो पुरुष अगर एक बार भी झेले तो फिर सारी पुरुष जाति कभी झेलने को राजी नहीं होगी। नौ महीने तक एक बच्चे को पेट में रखना और फिर उसे जन्म देने की पीडा और फिर उसे बड़ा करने की पीड़ा वह कोई पुरुष कभी राजी नहीं होगा। अगर एक रात भी एक छोटे बच्चे के साथ पति को छोड़ दिया जाय तो या तो वह उसकी गर्दन दबाने की सोचेगा या अपनी गर्दन दबाने की सोचेगा।

जब तक किसी स्त्री को उसका प्रेम न मिल जाए! तब तक वह पत्थर ही होती है।


तब तक उसके भीतर सब शिलाखंड हो गया होता है। और उसके पास हृदय पथरीला हो गया होता है। जब तक उसे उसका प्रेमी न मिल जाए और उसे उसके प्रेम का स्पर्श, जब तक उसे उसके प्रेम की छाया और जब तक उसे प्रेम की ऊष्मा न मिल जाए, तब तक उसके भीतर कुछ पत्थर की तरह ही पड़ा रह जाता है। वह अनंतकाल तक पत्थर ही रहेगा।


इसे एक तरह से और समझ लेना चाहिए! स्त्री जो है 'पैसिविटी' है। स्त्री जो है, वह ग्राहक अस्तित्व है 'रिसेप्टिव एक्जिसटेंस' है 'एग्रेसिव' नहीं है, आक्रामक नहीं है, ग्राहक है। स्त्री के व्यक्तित्व में ही गर्भ नहीं है, उसका चित्त भी गर्भ की भांति है। इसलिए अंग्रेजी का शब्द 'वूमन' तो बहुत मजेदार है। उसका मतलब है 'मैन विद ए वूंब' स्त्री जो है, वह गर्भसहित एक पुरुष है। स्त्री का समस्त अस्तित्व ग्राहक है 'रिसेप्टिव' है आक्रामक नहीं है।
पुरुष का सारा व्यक्तित्व आक्रामक है, ग्राहक बिलकुल नहीं है।


और यह दोनों 'कांप्लिमेंटरी' हैं, और स्त्री और पुरुष का सब कुछ 'कांप्लिमेंटरी' है। जो पुरुष में नहीं है वह स्त्री में है, जो स्त्री में नहीं है वह पुरुष में है। इसलिए वे दोनों मिलकर पूरे हो पाते हैं।*


स्त्री की जो ग्राहकता है, वह प्रतीक्षा बन जाएगी और पुरुष का जो आक्रमण है, वह खोज बनती है। अहिल्या जो शिलाखंड की तरह प्रतीक्षा करेगी, राम नहीं प्रतीक्षा करेंगे। राम अनेक पथों पर खोजेंगे। यह बड़े मजे की बात है कि शायद ही किसी स्त्री ने कभी प्रेम-निवेदन किया हो! प्रेम-निवेदन लिया है, किया नहीं है। शायद ही किसी स्त्री ने अपनी तरफ से प्रेम में 'इनीशिएटिव' लिया हो, अपनी तरफ से पहल की हो। ऐसा नहीं है कि स्त्री पहल नहीं करना चाहती, ऐसा भी नहीं है कि पहल उसके भीतर पैदा नहीं होती, लेकिन उसकी पहल प्रतीक्षा ही बनती है। उसकी पहल मार्ग ही देखती है, राह देखती है और अनंत जन्मों तक देख सकती है.

जब आप अलग हैं, तो पूरी दुनिया अलग है. ये दूसरी दुनिया बनाने का सवाल नहीं है. ये केवल एक अलग आप बनाने का सवाल है.

प्यास की ही कमी है
रास्ता बता दे स्वर्ग जाने का, परमात्मा से मिलने का
परमात्मा और तुम्हारे बिच प्यास की कमी ही तो बाधा है.

ओशो

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