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“मन्दिर भगवान के लिए नहीं बनाए जाते”



Temple

“मन्दिर भगवान के लिए नहीं बनाए जाते”


एक गांव में नया मन्दिर बन रहा था उस गाँव में वैसे ही बहुत मन्दिर थे आदमियों को रहने की जगह नहीं है भगवान के लिए मन्दिर बनते चले जाते हैं और भगवान का कोई पता नहीं है कि वो रहने को कब आएँगे कि नहीं आएँगे आएँगे भी कि नहीं आएँगे उनका कुछ पता नहीं है।

नया मन्दिर बनने लगा तो मैंने उस मन्दिर को बनाने वाले कारीगरों से पूछा कि बात क्या है? बहुत मन्दिर हैं गाँव में भगवान का कहीं पता नहीं चलता और एक किसलिए बना रहे हो? बूढ़ा था कारीगर अस्सी साल उसकी उम्र रही होगी बामुश्किल मूर्ति खोद रहा था उसने कहा कि आपको शायद पता नहीं कि मन्दिर भगवान के लिए नहीं बनाए जाते। मैंने कहा, बड़े नास्तिक मालूम होते हो मन्दिर भगवान के लिए नहीं बनाए जाते तो और किसके लिए बनाए जाते हैं? उस बूढ़े ने कहा, पहले मैं भी यही सोचता था लेकिन ज़िन्दगी भर मन्दिर बनाने के बाद इस नतीजे पे पहुँचा हूँ कि भगवान के लिए इस ज़मीन पर एक भी मन्दिर कभी नहीं बनाया गया।

मैंने कहा, मतलब क्या है तुम्हारा?
उस बूढ़े ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा कि भीतर आओ।

भीतर और बहुत कारीगर काम करते थे लाख़ों रुपए का काम था क्योंकि कोई साधारण आदमी मन्दिर नहीं बना रहा था। सबसे पीछे जहाँ पत्थरों को खोदते कारीगर थे उस बूढ़े ने ले जाके मुझे खड़ा कर दिया एक पत्थर के सामने और कहा कि इसलिए मन्दिर बन रहा है।

उस पत्थर पर मन्दिर को बनाने वाले का नाम स्वर्ण अक्षरों में खोदा जा रहा है।
उस बूढ़े ने कहा सब मन्दिर इस पत्थर के लिए बनते हैं। असली चीज़ ये पत्थर है जिसपे नाम लिखा रहता है कि किसने बनवाया मन्दिर तो बहाना है इस पत्थर को लगाने का ये पत्थर असली चीज़ है इसकी वजह से मन्दिर भी बनाना पड़ता है। मन्दिर तो बहुत महँगा पड़ता है लेकिन इस पत्थर को लगाना है तो क्या करें मन्दिर बनाना पड़ता है।

मन्दिर पत्थर यही लगाने के लिए बनते हैं जिनपे खुदा है कि किसने बनाया, लेकिन मन्दिर बनाने वाले को शायद होश नहीं होगा कि ये मन्दिर भीड़ के चरणों में बनाया जा रहा है भगवान के चरणों में नहीं। इसीलिए तो आज मन्दिर हिन्दू का होता है, मुसलमान का होता है, जैन का होता है। मन्दिर भगवान का कहाँ होता है?
ओशो
(संभोग से समाधि की ओर)

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