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प्रेम़़..... : क्या हे ? : ओशो की नजर से

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प्रेम़़..... :  क्या हे ? : ओशो की नजर से 

 

प्रेम ही आत्मा का ईंधन है। प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की एक असीम ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुंचने का आसान मार्ग है। प्रेम के बिना जो जीता है, वह एक लाश के समान है। उसके बिना जो जीता है, वह क्षुधातुर ही जीता है। प्रेम के बिना उसकी आत्मा का कोई अस्तित्व हि नही है। उसे आत्मा का कोई अनुभव भी नहीं होता। उसके लिए आत्मा केवल एक सुना गया, पढ़ा गया एक शब्द ही बनकर रह जाता है । लेकिन वह शब्द बिलकुल अर्थहीन ही होता है। क्योंकि बिना प्रेम के किसी को भी ज्ञात नही रहता कि वह कौन है।

बिना प्रेम के तो मनुष्य बाहर बाहर ही भटकता रहता है । वह अपने घर को उपलब्ध नहीं हो पाता। अतंस के भीतर जाने का एक ही द्वार है और वह प्रेम है। जैसे प्रतिपल शरीर को श्वास की जरूरत होती है। वैसे ही आत्मा को प्रेम की जरुरत होती है। श्वास ना मिले तो शरीर का जीवन से संबंध टूट जाता है। श्वास सेतु है। उससे हमारा शरीर से अस्तित्व जुड़ा रहता है। श्वास दिखाई नहीं देती सिर्फ उसके परिणाम ही दिखाई देता हैं कि मनुष्य जीवित है। जब श्वास चली जाती है तभी परिणाम ही दिखाई देता हैं। श्वास का जाना तो दिखाई नहीं देता है। यह दिखाई देता है कि मनुष्य की मृत्यु हो गयी है।

प्रेम और भी गहरी श्वास है । और भी अदृश्य अहसास है प्रेम आत्मा और परमात्मा के बीच का जोड़ है। एक सेतु है। जैसे शरीर और अस्तित्व को श्वास जोड़ा कर रखती है वैसे ही प्रेम की तरंगें जब बहती हैं तभी मनुष्य परमात्मा से जुड़ता है। परमात्मा से जुड़ने से ही मनुष्यको अपने होने के यथार्थ का पता भी चलता है। इसलिए प्रेम से महत्वपूर्ण और कोई दूसरा शब्द है ही नहीं। प्रेम से गहरी दूसरी कोई अनुभूति नहीं है ।

रेम तो रत्ती-रत्ती संभलकर चलता है, इंच-इंच संभलकर चलता है। प्रेम तो देखता है कि दूसरा कितने दूर तक चलने को राजी है, उससे इंचभर ज्यादा नहीं चलता। क्योंकि प्रेम का अर्थ ही है कि तुम्हें दूसरे का खयाल आया। दूसरे का मूल्य! दूसरा साध्य है, साधन नहीं!

प्रेम बड़ी पवित्र घटना है। जब तुम प्रेम करने की चेष्टा करने लगते हो, तभी अपवित्र हो जाता है प्रेम। तुम्हारा कृत्य नहीं है प्रेम–प्रेम है समर्पण, परमात्मा के हाथों में अपने को छोड़ देना।

प्रेम एकमात्र जीवन का अनुभव है जहां टाइम और स्पेस, समय और स्थान दोनों व्यर्थ हो जाते हैं। प्रेम एकमात्र ऐसा अनुभव है जो स्थान की दूरी में भरोसा नहीं करता और न काल की दूरी में भरोसा करता है, जो दोनों को मिटा देता है।

बिना एक शब्द बोले आप प्रेम प्रकट कर सकते हो, झगड़ा करने के लिए शब्द चाहिए, इसलिए जितना हो सके कम बोलें, मौन सर्वोत्तम है।

~ ओशो

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