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सेक्स दो ऊर्जाओं का नृत्य

Maneesha Chetna(Shunyo) and Mukta (With images) | Couple photos ...
osho

 

💞 सेक्स दो ऊर्जाओं का नृत्य


तुम्हे जिस स्त्री से प्रेम है।
यदि कभी वह किसी और के साथ आनंदित होती है,
इसमें गलत क्या है? तुम्हें खुश होना चाहिएकि यह प्रसन्न है, क्योंकि तुम उससे प्रेम करते
हो, केवल ध्यानी ही ईर्ष्या से मुक्त हो सकता है

सेक्‍स तो आमोद-प्रमोद पूर्ण होना चाहिए। न कि गंभीर मामला जैसा कि अतीत में बना दिया गया। यह तो एक नाटक की तरह होना चाहिए, एक खेल कि तरह: मात्र दो लोग एक दूसरे की शारीरिक ऊर्जा के साथ खेल रहे है। यदि वे दोनों खुश है, तो इसमें किसी दूसरे की दखल अंदाजी नहीं होनी चाहिए।
वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे। वे बस एक दूसरे की ऊर्जा का आनंद ले रहे है। यह ऊर्जाओं का एक साथ नृत्‍य है। इसमें समाज का कुछ लेना देना नहीं है।

जब तक कि कोई एक दूसरे के जीवन में नुकसान न दें। अपने को थोपे, लादे, हिंसात्‍मक न हो, किसी के जीवन को नुकसान न पहुँचाए, तब ही समाज को बीच में आना चाहिए। अन्‍यथा कोई समस्‍या नहीं है; इसका किसी तरह से लेना देना नहीं होना चाहिए।

सेक्‍स के बारे में भविष्‍य में पूरा अलग ही नजरिया होगा। यह अधिक खेल पूर्ण, आनंद पूर्ण, अधिक मित्रतापूर्ण, अधिक सहज होगा। अतीत की तरह गंभीर बात नहीं। इसने लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है। बेवजह सरदर्द बन गया था। इसने बिना किसी कारण—ईर्ष्‍या, अधिकार, मलकियत, किचकिच, झगड़ा, मारपीट, भर्त्‍सना पैदा की।

सेक्‍स साधारण बात है, जैविक घटना मात्र। इसे इतना महत्‍व नहीं दिया जाना चाहिए। इसका इ तना ही महत्‍व है कि ऊर्जा का ऊर्ध्‍वगमन किया जा सके। यह अधिक से अधिक आध्‍यात्‍मिक हो सकता है। और अधिक आध्‍यात्‍मिक बनाने के लिए इसे कम से कम गंभीर मसला बनाना होगा।

सेक्‍स से संबंधित नैतिकता के भविष्‍य को लेकर बहुत चिंतित मत होओ, यह पूरी तरह से समाप्‍त हो जाने वाला है। भविष्‍य में सेक्‍स के बारे में पूरी तरह से नया ही दृष्‍टिकोण होगा। और एक बार सेक्‍स का नैतिकता से इतना गहरा संबंध समाप्‍त हो जायेगा। तो नैतिकता का संबंध दूसरी अन्‍य बातों से हो जायेगा जिनका अधिक महत्‍व है।

सत्‍य, ईमानदारी, प्रामाणिकता, पूर्णता, करूण, सेवा, ध्‍यान, असल में इन बातों का नैतिकता से संबंध होना चाहिए। क्योंकि ये बातें है जो तुम्‍हारे जीवन को रूपांतरित करती है। ये बातें है जो तुम्‍हें अस्‍तित्‍व के करीब लाती है।

एक प्रेमी बनो—यह एक शुभ प्रारंभ है लेकिन
अंत नहीं, अधिक और अधिक ध्यान मय होने में शक्ति लगाओ। और शीध्रता करो, क्योंकि
संभावना है कि तुम्हारा प्रेम तुम्हारे हनीमून पर
ही समाप्त हो जाए। इसलिए ध्यान और प्रेम हाथ में हाथ लिए चलने चाहिए। यदि हम ऐसे
जगत का निर्माण कर सकें जहां प्रेमी ध्यानी
भी हो। तब प्रताड़ना, दोषारोपण, ईष्र्या,हर संभव मार्गसे एक दूसरे को चोट पहुंचाने
की एक लंबी शृंखला समाप्त हो जाएगी।
और जब मैं कहता हूं प्रेम हमारी स्वतंत्रता
होनी चाहिए। वे सारे जगत में मेरी निंदा करते है। एक ‘सेक्स गुरू’ की भांति। निश्चित ही में
प्रेम की स्वतंत्रता का पक्षपाती हूं। और एक
भांति वे ठीक भी है। मैं नहीं चाहता कि प्रेम बाजार में मिलने वाली एक वस्तु हो।
यह मात्र उन दो लोगों के बीच मुक्त रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। जो राज़ी है। इतना ही पर्याप्त है। और यह करार इसी क्षण के लिए है। भविष्य के लिए कोई वादा नहीं है। इतना ही पर्याप्त है।

तुम्हारी गर्दन की ज़ंजीरें बन जायेगी। वे
तुम्हारी हत्या कर देंगी। भविष्य के कोई वादे नही, इसी क्षण का आनंद लो। और यदि अगले
क्षण भी तुम साथ रहे तो तुम इसका और भी
आनंद लो। और यदि अगले क्षण तुम साथ रह सके तुम और भी आनंद ले पाओगे।
तुम संबद्ध हो सकते हो। इसे एक संबंध मत
बनाओ। यदि तुम्हारी संबद्धता संपूर्ण जीवन चले, अच्छा है। यदि न चले, वह और भी अच्छा है।

संभवत: यह उचित साथी न था शुभ हुआ कि तुम विदा हुए। दूसरा साथ खोजों। कोई न कोई
कहीं न कहीं होगा जो तुम्हारी प्रतीक्षा कर
रहा है। लेकिन यह समाज तुम्हें उसे खोजने की अनुमति नहीं देता है। जो तुम्हारी प्रतीक्षा
कर रहा है। जो तुम्हारे अनुरूप है।
वे मुझे अनैतिक कहेंगे, मेरे लिए यही
नैतिकता है। जिसे वे प्रचलन में लाने का प्रयास कर रहे है वह अनैतिक है...........

 _*ओशो*_

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